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Hindi Sex Story बरसात की प्यासी रात

भाग 1: बरसात कि वो रात
20 साल पहले एक बरसात की रात चंदा और सुमित के संबंध बने। फिर वक़्त के बहाब में चंदा की शादी सुमित के चचेरे भाई से हो जाती है। पर आज 20 साल बाद फिर चंदा की ज़िंदगी में सुमित अचानक सामने आकर खड़ा हो जाता है वो भी फिर एक बरसात की रात। अब कैसे करेंगे दोनों एक दूसरे का सामना।

साल 2021 की जुलाई के महीना था। आज किसी काम से दूसरे शहर से लौटते वक्त हाईवे पर से ही तेज बारिश शुरू हो गयी। मैं मोटरसायकिल से था, कहीं कोई रुकने की जगह नही थी, मैं पूरी तरह भीग गया। किसी तरह मैं गाड़ी चला रहा था। अचानक मेरी बाइक फिसल गई, मुझे थोड़ी घुटने में चोट आई। मेरे छोटे चचेरे भाई का घर अब यह से दूर नही था, बारिश बहुज तेज़ हो रही थी। मैं अपने चचेरे भाई के घर जाने के लिए एक गली में मुड़ गया। पूरी गली में पानी भरा था। शाम भी घिर आयी थी, 6 बज रहे थे, पर अंधेरा हो गया था। मेरे घुटने में तेज दर्द हो रहा था। मैं किसी तरह अपने चचेरे भाई के घर पहुँचा, पूरी कॉलोनी अंधेरे में डूबी हुई थी । शायद बहुत टाइम से लाइट नही आ रही होगी, मैंने अनुमान लगाया। मैंने कॉल बेल न बजाकर सीधे मेन गेट खोला। बारिश के शोर में कुछ नही सुनाई पड़ रहा था। घर में अंधेरा पसरा था, पीछे एक बैडरूम से मोबाइल की रोशनी आ रही थी।

थोड़ा लगड़ाते हुए, मैं अंदर की तरफ बढ़ चला। चारो तरफ अंधेरा था जो बिजली चमकने पर नीली रोशनी से चमक जाता था। बारिश और तेज हो गयी थी।

भाई... कोई है ...भाई... मैंने अपने चचेरे भाई को आवाज़ लगाई पर कोई जवाब नही आया।

तभी बहुत तेज़ बिजली कड़की... लगता था जैसे कहीं पास ही बिजली गिरी है। बगल वाले कमरे से किसी औरत के चीखने की आवाज़ आयी, मैं कमरे में दाखिल हुआ, कौन है क्या हुआ??

अचानक बिजली कड़कने के नीले प्रकाश में मुझे दिखा की कोई गौरवर्णीय स्त्री अपने शरीर पर कपड़े लपेट रही थी,,फिर अंधेरा हो गया।

जेठ जी, बस एक मिनट... मेरे छोटे भाई की पत्नी चंद्रप्रभा उर्फ चंदा का घबराया हुआ स्वर गूंजा।

क्या हुआ...चंदा? मैंने अंधेरे में देखते हुए पूछा।

बस दद्दा (बड़े भाई)...एक मिनट।

मैं कुछ समझ पाता कि फिर एक बार आसमान को फाड़ देने वाली डरावनी आवाज़ के साथ कही पास ही बिजली गिरी, पूरा कमरा नीली रोशनी से नहा गया। एक घबराई आवाज़ के साथ वो दौड़ती हुई आयी और मेरे बदन से लिपट गयी। अंधेरा फिर हो गया था।

37 साल की परिपक्व, दो बच्चों की माँ, 12 साल से विवाहिता, रिश्ते में मेरी भाभो मुझसे ऐसे लिपट गयी थी, जैसे कोई नव प्रेमी युगल एकांत में लिपट कर प्रेम करते हों। चंद्रप्रभा के उन्नत वक्षःस्थल, पेट पर पड़ते वलय, उभरा हुआ पेड़ू, वृहत पुष्ट नितम्भ, मांसल बाहें मुझे उस अंधकार में उसके यौवन के सारे माप बता रहे थे।

हम दोनों की सांसें फूलने लगी। दिल तेज़ी से शोर करने लगे। तभी लाइट आ गयी। चंदा तेज़ी से पीछे हटी और दौड़ कर दूसरे कमरे में चली गयी। मैं कुछ देर वैसे ही खड़ा रहा फिर एक सोफे पर बैठ गया।

20 साल पहले की बात है, तब चंदा लगभग 17 साल की नवयुवती थी। लखनऊ शहर में हमारे चाचा जी का बड़ा मकान था। जहां चंदा का परिवार किरायेदार के तौर पर रहता था। 2 भाइयों में बीच के नंबर पर थी चंदा। मैं दूसरे शहर में रहता था। इंटरमीडिएट की परीक्षा हो चुकी थी इसीलिए मैं चाचा जी के यहाँ छुट्टियां बिताने आया था। मेरी चचेरी बहन अंशु जो लगभग 16 साल की थी, चंदा की अच्छी दोस्त थी।

चंदा का परिवार घर के पिछले हिस्से में रहता था। घर के दोनों हिस्सों के बीच एक जालीदार गेट था, जो अक्सर बंद रहता था। जब चंदा अंशु के साथ खेलने आती तो गेट खोल देती। चंदा बहुत सुंदर थी, मेरी उम्र 18 साल थी, इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति तीव्र आकर्षण होता ही है। चंदा भी मुझे देख कर मुस्कुरा देती थी। पर मैं कुछ कहने से डरता था।

धीरे धीरे छुट्टियां खत्म हो रही थी। जुलाई के महीने आ गया था। एक दिन शाम के समय मेरी चाची के मायके से फ़ोन आ गया, कि वहां चाची की माता जी बहुत बीमार हैं। चाची अपने बच्चो को लेकर चली गयी। मैं घर में अकेला रह गया। क्योंकि शाम को चाचा जी ऑफिस से आते तो कोई होना चाहिए घर पर। क्योंकि चाची अचानक चली गयी थी। चाचा कोई 8 बजे तक आते थे। क्योंकि आफिस दूसरे शहर में था। शाम ढलते ही ज़ोरदार बारिश शुरू हो गयी। अभी आसमान में कुछ उजाला था। मैं बाथरूम जाने के लिए घर के पिछले वाले हिस्से की तरफ जा रहा था, जहां जाली वाला गेट था। मैंने देखा चंदा घर के आंगन में बारिश में भीग रही थी और गोल गोल घूम रही थी। सफेद रंग के सलवार कुर्ती में गौरवर्णीय चंदा का रूप और खिल रहा था। हल्के हल्के अंधेरे में उसके चेहरे पर चांदनी चमक रही थी। अचानक मुझे देखकर वो बोली आओ सुमित, मज़ा आएगा।

मैं गेट खोलकर चंदा के पास गया, ऊपर लोहे के जाल से आती बारिश की मोटी ठंडी बूंदे मुझे भिगोने लगी। अंधेरा हर पल गहरा रहा था।

मैं चंदा के रूप यौवन को निहार रहा था, उसकी सफेद झीनी कुर्ती उसके तन पर चिपक गयी थी, जिससे उसके गौरवर्णीय अंग झलक रहे थे। हल्के यौवनावस्था के उभार, पतली कमर। वो षोडशी पतली दुबली नवयुवती, यौवन के दहलीज़ पर पहला कदम रखी थी। वो खुशी से झूम रही थी।

अचानक आसमान से कहीं जोर से बिजली गिरने की आवाज़ हुई, लगा मानो आसमान ही फट गया। चंदा जोर से चीखते हुए मुझसे लिपट गयी।

17 साल की चंदा और 18 साल का मैं। इस उम्र में हम दोंनो के तन में ज्वार भाटा सा उठ गया। चंदा सर उठाकर मेरी आँखों में देखने लगी, जैसे कुछ पूछ रही हो। उसके पतले गुलाबी होंठो से पानी की बूंदें रह रह कर गिर रही थी। एक ठंडी हवा का तेज झोंखा जिसके कारण पानी की बूंदे ज़ोर से हमारे तन पर पड़ी। चंदा ने आंखे बंद कर ली, मैंने अपने होंठ उसके भीगें होंठो पर रख दिये।

भाग 2: नारी का अनावृत सौंदर्य
चंदा दूसरे कमरे में शायद अपने कपड़े बदल रही थी। मैं सोचने लगा कि कमसिन सी चंदा 20 साल बाद आज एक परिपक्व महिला बन चुकी है। उसके योवन की माप मेरे मन पर अंकित हो गयी थी। उसके सुडौल अंगों का स्पर्श मुझे अभी तक आनंदित कर रहा था। पर वो अब मेरे छोटे भाई की विवाहिता थी। पर पुरूष का मन तो नारी के यौवन पर आकर्षित होता ही है। इससे अच्छा तो यह होगा कि मैं यहाँ से चल जाऊं। पर पहले चंदा को बता दूँ।

तभी अचानक लाइट फिर चली गयी।

चंदा मैं जा रहा हूं। मैंने आवाज़ लगाई।
अभी हल्की बारिश हो रही थी। पर साथ ही ठंडी हवा भी चलने लगी थी। जिसके कारण मौसम ठंडा हो गया था। और मेरे शरीर के रोम खड़े हो गए थे।

उधर अचानक अंधेरा हो जाने से चंदा जिसने आधे अधूरे कपड़े पहने थे। और उसके पूरे बदन पर पानी की बूंदे थीं।

मैंने मन में सोचा कि चंदा बहुत शर्म के कारण जवाब नही दे रही होगी, तो चलो मैं यहां से चला जाता हूं। यह सोचकर मैं बाहर मुख्य द्वार पर आ गया और अपनी बाइक देखने लगा।

उधर चंद्रप्रभा ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोल कर बाहर झांका- दादा, दादा... … जेठ जी … कहाँ हैं आप?
बाहर कोई नहीं दिख रहा था।

चंदा को अब कुछ डर सा लगने लगा … पता नहीं क्या हुआ … जेठ जी कहाँ चले गए।

एक तो युवा महिला … वो भी लगभग निवस्त्र, ऊपर से भीगी हुई, घर में अकेली … क्या करे?

चंदा ने थोड़ा सा दरवाज़ा और खोलकर पूरा चेहरा बाहर निकाल कर चारों तरफ देखा … कोई नहीं है … बिल्कुल सन्नाटा! ऊपर लोहे का बड़ा सा जाल था, जिससे पानी की फुहारें चंदा के गौरवर्णीय चेहरे पर पड़ने लगी। चंदा के गुलाबी अधर जो थोड़ा सूज कर मोटे लगने लगे थे, अब ठंड से कांप रहे थे।

हिम्मत जुटा कर उसने पूरा दरवाज़ा खोला और धीरे से सहमी हुई बाहर आई. साथ ही अपनी दोनों हथेलियों से अपने स्तनों को छुपाने की लगातार कोशिश भी कर रही थी वो!

अपने यौवन के शिखर पर खड़ी नारी की नग्न देह बहुत सुंदर प्रतीत होती है।

5 फुट 4 इंच का थोड़ा भारी शरीर, गोरा रंग, कमर तक लंबे बाल, काली आँखें, थोड़े मोटे होंठ, भरे हुए गाल चंदा के यौवन को बढ़ा रहे थे।

“दादा? आप कहाँ हैं? प्लीज़ जल्दी आइये … हमें बड़ा डर लग रहा है।” चंदा काँपती आवाज़ में बोली।

कोई नहीं है. बस सन्नाटा!

चंदा ने चारों तरफ घूम कर जेठ जी को देखा. अंधेरे में एक डाइनिंग टेबल है उसके सामने किचन … किचन के बगल में एक कमरा, उसके बगल में ड्राइंग रूम।

चंदा धीरे से ड्राइंग रूम की तरफ जाने लगी.

चौड़े मांसल कंधे, फूले हुए बड़े स्तन जिन्हें चंद्रप्रभा ने अपनी हथेलियों से अभी भी छुपा रखा था. थोड़ा बाहर निकला पेड़ू, और गहरी, बड़ी और बिल्कुल गोल नाभि, जिसकी गहराई 1 इंच होगी और गोलाई 2 इंच! उसके चारों तरफ पानी की छोटी छोटी बूंदें चमक रही थी, कटिप्रदेश से नीचे एक सलवार कसी हुई थी, जो भीग कर बिल्कुल चिपक गयी थी.

ड्राइंग रूम में अँधेरा था, अंदर जाने से पहले चंदा ने थोड़ा जोर से आवाज़ लगायी- दादा … क्या आप अंदर हैं?
कोई जवाब नहीं! चंदा हिम्मत करके अंदर गयी. वो टटोल कर बिजली का बोर्ड ढूँढने लगी.

पर शायद उसकी उंगली बिजली के सॉकेट में चली गयी … और एक चीख के साथ चंदा फर्श पर गिर कर बेहोश हो गयी.

मैं सड़क पर गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश कर रहा था, जो स्टार्ट नही हो रही थी। चंद्रप्रभा की चीख सुनकर मैं तेज़ी से अंदर भागा। क्या हुआ चंदा को? आज का दिन क्या क्या दिखायेगा?

कुछ देर बाद ड्राइंग रूम में मैंने एक मोमबत्ती जलाई. चंदा पेट के बल फर्श पर पड़ी थी. क्या रसभरे सुंदर नितम्भ थे चंद्रप्रभा के!
बड़े बड़े फूले हुए कमल के फूल की तरह कोमल, थोड़ा बाहर की तरफ उठे हुए।

औरत के गोरे और गदराए, अनावृत नितम्ब, नीचे चिकनी मोटी जाँघें केले के पेड़ के तने जैसी, सलवार दोनों नितंबों की दरार में खो गयी थी.
अब वो थी पूर्ण निःवस्त्र युवती!

मेरे दो मजबूत हाथों ने चंदा को उठाया. चंदा उसकी बांहों में झूल गयी. दोनों हाथ नीचे झूल रहे थे और बड़े बड़े स्तन इधर उधर ढलक गए थे. चंदा के कुच काफी बड़े थे और फूले हुए, भूरे वर्ण के कुच वक्ष-सौंदर्य को बढ़ा रहे थे।

मैं चंद्रप्रभा को उसके बैडरूम ले आया। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। वो निढाल सी पड़ी थी। मुझे बड़ी चिंता हो रही थी कि पता नही चंदा को क्या हुआ है। मोमबत्ती की रोशनी में उसका गोरा बदन दमक रहा था। मैंने अपने मोबाइल से एक डॉक्टर दोस्त को कॉल करके सब बताया।

उसके बताये हुए अनुसार मैं एक सूखे तोलिये से चन्दा के बदन को सुखाने लगा। अचानक बारिश तेज़ हो गई, मैंने जल्दी से बेडरूम की खिड़की दरवाज़े को बंद कर के सिटकनी लगा दी।

अब रह रह कर बिजली चमकने लगी थी। बिजली की चमक से रोशनदान और खिड़की के कांच से आती नीली रोशनी से चंदा का पूरा तन जगमगा उठता।

मैं इस वक़्त सिर्फ एक अंडरवियर में था, क्योंकि मेरे सारे कपड़े भीग चुके थे। पर मेरा पूरा ध्यान चंदा की देखरेख में था। कुछ देर बाद चंदा के शरीर में कुछ हलचल हुई। मैंने देखा वो ठंड से कांप रही थी। मैंने उसके तन से सारे वस्त्र उतार दिए। और उसके तलवो को अपनी हथेलियों से रगड़ने लगा। कुछ देर बाद चंदा होश में आने लगी।

खुद को बिस्तर पर निवस्त्र और मुझे उसके बदन को रगड़ते देखकर वो चिहुँक कर बेड से कूद कर खड़ी हो गई। मैंने कहा मैं सब समझाता हूं चंदा। वो मुझे गुस्से से देख रही थी।

तभी एक जोरदार बिजली की गर्जना हुई। वो दौड़ कर मेरे सीने से लिपट गयी। ठंडा मौसम, निवस्त्र परिपक्व औरत मेरे नग्न शरीर से लिपट कर खड़ी थी। मेरे शरीर मे खून तेज़ी से दौड़ने लगा। आसमान में बिजली कड़कती जा रही थी। चंदा के स्तन मेरे सीने में पेवस्त थे। मैंने उसके दोनों नितंबो को दबोच कर उसे अपने करीब किया। वो समर्पण का भाव लिए चुपचाप मुझे देखने लगी।

एक जोरदार बिजली कड़की उसकी नीली रोशनी में मुख्य द्वार के पास लगी नेमप्लेट पर लिखा नाम "श्रीमती चंद्रप्रभा सिंह" चमक उठा।

उसी पल मैंने अपने गरम होंठ चंदा के गुलाबी मोटे होंठो पर रख दिये।

आज बीस साल बाद हम दोनों की जुबाने आपस में कुछ बातें कर रही थी जिसे सुनना मुश्किल था।

बारिश जोरों पर हो रही थी। साथ ही तेज़ हवा के झोंके मौसम को ठंडा करते जा रहे थे। चंदा की जीभ को मैं अपने होंठो से चूस रहा था। मेरा एक हाथ उस उस स्त्री के विशाल स्तन पर पहुच गया। पहाड़ों के ऊपर जमी बर्फ अब पिगलने लगी थी। मैंने चंदा को अपनी बाहों में उठा लिया। और बेड रूम में ले गया। बिजली चमकने से कमरे में नीली रोशनी आ रही थी। मैंने चंदा के सलवार का नज़ीरबन्द खोल दिया। वो पूरी निवस्त्र हो गयी। और शर्मा कर पलट कर खड़ी हो गयी। बिजली फिर चमकी, उसके पुष्ट चौड़े नितम्भ देखकर मैंने उसके पीछे से आलिंगन कर लिया, मेरा उतेजित यौन अंग उसके दोनों विशाल नितंबों की दरार में रगड़ रहा था। चन्दा की अंग से रिसाव होने लगा था।

मैंने पीछे से अपने दोनों हाथ आगे लेजाकर उसके कूचों का भरपूर मर्दन करना शुरू कर दिया। अब चंदा की पलकें भारी होने लगी थी।

वो मादक सीत्कारें भर रही थी। बारिश जोरों से हो रही थी।

चंदा थोड़ा आगे बढ़ी और फिर बेड पर लेट गयी। और पलट कर मेरी तरफ बाहें फैला कर देखने लगी। नग्न स्त्री का ये मौन आमंत्रण मुझे स्वीकार था।

मैं बिल्कुल निवस्त्र था, मैं चंदा के ऊपर लेट गया। उसके गरम स्तन मेरे सीने में धस गए, मेरे हाथ उसके बड़े बड़े नितंबो को दबा रहे थे। मेरा अंग चंदा के अंग के मुहाने पर टिका हुआ था। चंदा चुम्बनों की बौछार किये जा रही थी। अचानक कसकर बिजली कड़की। चंदा ने डर कर चीख मारी, उसकी दोनों जांघो के बीच कुछ दूरी हो गयी, योनि के ओंठ खुल गए, उसी वक़्त मेरा उतेजित लिंग झटके से उसकी चिकनी गहराई में उतरता चला गया।

ओह दद्दा....चंदा ने आनंद से मिले हुए मादक स्वर में बोला।

हम दोनों ने अपने वैवाहिक अनुभव का लाभ उठाते हुए लगभग पूरी रात न जाने कितनी बार संभोग किया। चंदा और मुझे कई बार चरम सुख प्राप्त हुआ। हमने हर तरीके से, हर मुद्रा में सहवास सुख प्राप्त किया।

 

चन्दा की गदराई जवानी

जाड़े की वो सर्द रात चारो तरफ ठंड, अंधेरा, सन्नाटा। मैं बाइक से अपने कजिन भाई के घर पहुंचा। पूरी गली में कोहरा था और अंधेरा था। शायद लाइट नहीं आ रही थी।

मैं जानता था कि उसकी पत्नी चंदा घर पर अकेली होगी, क्यूंकि वो दूसरे शहर में नौकरी करता एवं रहता था।

रात के 11 बज रहे थे। मैंने चंदा को फोन किया।

फोन उठा...प्रणाम दादा...चंदा का मादक स्वर गूँजा।

चंदा मैं तुम्हारे गेट पर खड़ा हुँ। आओ खोलो आकर।

जी दादा...चंदा ने फोन काट दिया।

10 सेकेंड बाद चंदा ने गेट खोला। अंधेरा बहुत था पर चंदा का चाँद सा चेहरा चमक रहा था। इस अंधेरे में भी देख सकता था मैं.....

 
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